घर छोड़ कर गए बड़े भाई को बहिन का पत्र।
ग्रेटर कैलाश,
नई दिल्ली,
दिनांक 15 , जून ……….
आदरणीय भाई साहब,
सादर नमस्ते ।
बरसों के बाद आपसे मिलने के लिए न जाने किस तरह घर से बाहर पैर निकाला था । सोचा था, घर पहुँचकर आपसे लड़ेंगी-झगड़ेंगी और अपने प्रति उदासीनता का कारण पूछूगी। मैं रूलूंगी और आप मनाओगे, पर घर पहुँचते ही सब कुछ स्वाहा हो गया। घर की चारदीवारी में ‘भैया’ शब्द गुंजकर ही रह गया। माँ ने बताया, तेरे भैया तो घर छोड़कर चले गए हैं। वे हमसे रूठ गए हैं शकुन। किसी प्रकार तू ही अपने भैया को वापस बुला ले। तेरी भाभी उनके विरह में शरीर खो बैठी है । जब से विनोद गया है, न खाती है और न पीती है। हर समय गुम-सुम पड़ी रहती है । तू ही वापस बुला ले, लाडो।
भैया ! माँ की आँखों के आँसू और भाभी का आपके गम में पीला चेहरा देखकर कलेजा मुँह को आने लगा । घर में इतना बड़ा कांड हो गया, किसी ने मुझे इसकी खबर भी नहीं दी । खैर, आपके बिना घर की चारदीवारी खाने को दौड़ती है । नन्हीं सविता तो हर समय द्वार पर बैठी आपकी प्रतीक्षा करती रहती है। कहती है कि पापा मेरे लिए बहुत सारे खिलौने लेने गए हैं।
आपके परम मित्र सुदर्शन जी से आपका पता लेकर यह पत्र लिख रही हैं। भैया । यहाँ सब आपके बिना व्याकुल हैं । पति-पत्नी में कहा-सुनी तो हो ही जाया करती है, उसके लिए वृद्धा माँ, नन्हीं सविता और प्यारी पत्नी से इतना रूठना ठीक नहीं । लौट आओ, भैया ! घर का सूनापन मानो खाने को दौड़ता है । क्या अपनी स्नेहमयी बहिन का कहना नहीं मानोगे ? माँ आपको आशीष देती हैं।
आपकी स्नेहमयी बहिन,
शकुन