हॉस्टल से पिताजी को पुत्र का पत्र – औपचारिक
इंजीनियरिंग कॉलेज,
कानपुर ।
दिनांक 12 अगस्त,
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । आपका आज ही पत्र मिला । पढ़कर आपके विचारों से अवगत हुआ । गत मास अध्ययन में अधिक व्यस्त रहने के कारण पत्र न भेज सका, क्षमा प्रार्थी हूँ।
इस बार मुझे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की आशा है । आजकल पाठ्य-पुस्तकों की आवृत्ति चल रही है।
आपने पत्र में चित्रपट के अवगुणों के विषय में जो संकेत दिए हैं, उनकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं हैं । अब मुझे चित्रपट का विशेष शौक नहीं है, भविष्य में इससे और भी दूर रहने का प्रयास करूंगा।
मैं स्वास्थ्य का पूरा-पूरा ध्यान रख रहा हूँ । आपके आदेशानुसार फल और दूध ले रहा हूँ। सर्दी पड़ने लगी है । मैं एक गर्म कोट बनवाना चाहता हूँ। कृपया चार सौ पच्चीस रुपये यथाशीघ्र भिजवा दें । पूज्य माता जी को मेरा नमस्कार कहें और कविता को मृदुल प्यार ।
आपका आज्ञाकारी पुत्र,
सुमन