सास की ओर से वधू को औपचारिक पत्र।
दिल्ली।
दिनांक 21 जनवरी,
बहूरानी सरिता,
सदा सुहागिन रहो !
अत्र कुशलं तत्रास्तु । अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला । तुमने प्रमिला के विवाह तक रहने की अनुमति मांगी है। यद्यपि तुम्हारी अनुपस्थिति हम सबको असह्य है तथापि छोटी भगिनी के विवाह के अवसर पर तुम्हारे लिए अपनी माता जी का हाथ बँटाना बहुत आवश्यक है । सो, तुम उस घड़ी तक वहीं रहो। यथाशक्ति माता-पिता के कार्य में हाथ बँटाओ । रंजना का स्वेटर शीघ्र तैयार करके भेज देना, सर्दी जोर पकड़ती जा रही है ।
राकेश भारतीय प्रशासन सेवा की परीक्षा में जुटा हुआ है । रात-रात भर उसकी पढ़ाई में गुजर जाती है । उसे किसी तरह सफलता मिल जाए तो भविष्य सुधर जाएगा ।
अपने पड़ोस का सोहन कल एकाएक पतंगबाजी करते हुए छत से गिर पड़ा है। काफी चोट आई है उसे इर्विन अस्पताल में भरती करवा दिया गया है।
अनुपमा का पूरा ध्यान रखना । कहीं बुरी संगति में न पड़ जाए। उसे पुस्तकें पढ़ने का बड़ा शौक है। उसे कुछ शिक्षाप्रद कहानियों की पुस्तकें दिलवा देना ।
यदि आभूषणों व कपड़ों की आवश्यकता पड़े तो लिखना । मैं किसी के हाथ भिजवा दूंगी।
अपने माता-पिता जी को हमारी ओर से नमस्कार कहना । अनुपमा को आशीष । यहाँ सब तुम्हें प्रणाम कहते हैं।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में ।
तुम्हारी स्नेहमयी सास,
कलावती