पत्नी का पति को औपचारिक पत्र
नैनीताल ।
दिनांक 18 मई, …
मेरे हृदयेश,
यहाँ आये हुए दो सप्ताह से अधिक समय हो गया है, किंतु आपका कोई समाचार नहीं मिला, क्या कारण है ? आपने तो मायके भेजते समय मझे आश्वासन दिलाया था कि हर तीसरे दिन मेरा पत्र तुम्हें मिल जाया करेगा । अब तो 18 दिवस से ऊपर का समय हो गया; किंतु आपके एक भी पत्र के दर्शन नहीं हुए, इससे मन अधिक व्याकुल है। शीघ्र ही कुशल समाचार भेजने की कृपा करें।
माता जी अब पहले से कुछ स्वस्थ हैं। अब वे बिस्तर से उठकर चलने-फिरने लगी हैं । दवाई भी ठीक समय पर ले रही हैं, वे आपको बहुत याद करती है। मुझसे कहती हैं कि आनंद को पत्र लिख दे, केवल एक दिन के लिए ही मुझे अपनी सूरत दिखा जाए, पता नहीं फिर कभी …। न जाने ठीक समय पर खाते-पीते भी होंगे या नहीं। कौन देख-भाल करता होगा? यही बात मेरे हृदय में बस गई है। अभी आपके बिछोह में कुछ ही दिन बीते हैं, पर ऐसा अनुभव हो रहा है, जैसे एक युग बीत गया हो । विरह के ये पल बहुत लंबे प्रतीत होते हैं आपके बिना इस रम्य स्थली में मुझे कुछ नहीं सुहाता है ।
कल घर पर माता जी को देखने के लिए परिचित नव दंपति आया था। उसे देखकर मेरी देह रोमांचित हो उठी । वे ‘हनीमून’ के लिए यहाँ आए हुए थे । माता जी भी मुझे संध्या समय घूमने के लिए विवश करती हैं । विवश होकर कभी-कभी मैं भी तुम्हारी छोटी साली अलका को लेकर निकल जाती हूँ। वहाँ पर रेलिंग के सहारे खड़े होकर जब मैं नैनीलेक में बत्तखों को तैरती हुई
और नौकाओं में बैठे हुए रंग-बिरंगे परिधानों में नव दम्पतियों को देखती हूँ तो बादल चुपके से आकर मेरे कपोलों को स्पर्श कर जाता है, तब ऐसा लगता है कि आप…….. । सच मानो, बादल के इस कहरेपन में आपके बिना मैं बिना पानी की मीन के समान तड़प उठती हूँ। इसमें पेड़-पौधे, वृक्ष-वनस्पति, सड़क पर घूमती हुई तितलियाँ आदि ऐसे छिप जाते हैं मानो आँख मिचौनी का खेल चल रहा है । फिर धीरे-धीरे यह कुहरे का पर्दा हटता जाता है, सारी चीजें स्पष्ट होती जाती हैं । कदाचित आप भी किसी दिन कुहरे के हटते ही दिखाई दे जाओ ।
अब मन की व्याकुलता को और भी अधिक चित्रित करने में मेरी तूलिका असमर्थ-सी होती जा रही है। कहने के लिए बहुत कुछ बाकी है । शब्द शक्ति कहाँ से लाऊँ ? सारी शक्ति तो आप चुराए बैठे हो । पत्रोत्तर के स्थान पर स्वयं आकर मेरी बढ़ती हुई व्याकुलता को रोको और यहाँ पावस प्रमोद का आनंद लूटो । मेरे उत्कंठित नेत्र आपकी राह में पांडवे बिछाए हुए हैं।
माता जी आशीष दे रही हैं और अलका अपने जीजा जी को नमस्ते लिखवा रही है।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में ।
आपकी दासी,
सुलेखा